A Simple Key For Shodashi Unveiled

Wiki Article



The power level in the middle of the Chakra displays the best, the invisible, along with the elusive Middle from which your complete figure Bhandasura and cosmos have emerged.

चक्रेश्या प्रकतेड्यया त्रिपुरया त्रैलोक्य-सम्मोहनं

The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, enhancing interior relaxed and focus. Chanting this mantra fosters a deep perception of tranquility, enabling devotees to enter a meditative point out and hook up with their inner selves. This profit improves spiritual awareness and mindfulness.

Shiva utilized the ashes, and adjacent mud to yet again variety Kama. Then, with their yogic powers, they breathed existence into Kama in this type of way that he was animated and very able to sadhana. As Kama continued his sadhana, he slowly obtained electrical power over Other individuals. Totally aware from the prospective for issues, Shiva performed alongside. When Shiva was asked by Kama for a boon to possess 50 % of the power of his adversaries, Shiva granted it.

The supremely lovely Shodashi is united in the heart on the infinite consciousness of Shiva. She eliminates darkness and more info bestows light. 

ऐसा अधिकतर पाया गया है, ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है। लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना जोकि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न कर लेता है उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है। वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में नहीं जाता है। वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।

ईक्षित्री सृष्टिकाले त्रिभुवनमथ या तत्क्षणेऽनुप्रविश्य

तरुणेन्दुनिभां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥२॥

दृश्या स्वान्ते सुधीभिर्दरदलितमहापद्मकोशेन तुल्ये ।

श्वेतपद्मासनारूढां शुद्धस्फटिकसन्निभाम् ।

हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥११॥

ज्योत्स्नाशुद्धावदाता शशिशिशुमुकुटालङ्कृता ब्रह्मपत्नी ।

यदक्षरशशिज्योत्स्नामण्डितं भुवनत्रयम् ।

Report this wiki page